माताजी मिसेज़ वासुदेवन के निधन का समाचार सुनकर हम सभी बहुत दुखी हैं। बावजूद इसके कि हम में से कई लोग अब जीवन के उस पड़ाव पर हैं जब ऐसे समाचार कोई आश्चर्य की बात नहीं रह जाते हैं।व्यक्तिगत रूप से उनसे कोई २५ वर्ष पूर्व पूर्णिया में मिला था, नेतरहाट छोड़ने के क़रीब १५ साल बाद। श्रीमानजी ने अपने दोनों हाथों में मेरा चेहरा भर कर कहा था - ‘कितना बड़ा हो गया!’ माताजी हमेशा की तरह शांत, थोड़ा मुस्कुरायीं और अपनी ममता भरी आँखों से मुझे देखती हुई बस सर पर हाथ फेर दिया। कोई दिखावा या कृत्रिमता नहीं, सिर्फ़ स्नेह, जो कहा-सुना नहीं जाता, बस देखा और महसूस किया जाता है। ऐसी ही थीं माताजी, शांत, स्मित और ममतामयी। उनके निधन पर समीर को एक टेक्स्ट लिखने लगा। काफ़ी संतुलित था, पर जब अंत में बारी आयी ये लिखने की कि श्रीमानजी को अकेला मत होने देना, तब आँखों से मोती झड़ने लगे। कुछ बूँदें शायद उनके चरणों पर श्रद्धांजलि बनकर गिरी हों! ईश्वर उन्हें परम शांति दें और परिवार को शक्ति!
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